भगवान जी का इंटरव्यू
Aug 26, 2023
Aug 20, 2023
20.08.2023
रिमांड पर टमाटर
-संतराम पाण्डेय-
आज सरेखचंद जी टमाटर पर बरस रहे थे। बगल में ही बैठा निरहुआ टमाटर की तरह लाल हुआ जा रहा था कि जब टमाटर औकात में आ गए हैं तो साहब जी टमाटरों को क्यों रिमांड पर लिए हैं लेकिन सरेखचंद जी आज टमाटरों पर बरसे जा रहे थे। जबसे उनको चुनाव लडऩे की सूझी, हर बात में उनको राजनीति दिखने लगी। अब टमाटरों में राजनीति देख रहे हैं। दल बदलते लोगों पर निशाना साधते हुए बोले-जिसका कोई ईमान-धरम नहीं, वह टमाटर हो गया। इन टमाटरों का क्या, कभी हरे, कभी पीले तो कभी लाल। ये कभी ५ रुपए किलो बिकते हैं तो कभी डेढ़ सौ पर भी नहीं रुकते। बहुत रंग बदलते हैं। इनके आगे तो अब गिरगिट भी मात खाने लगा है। ये कभी इतने अमीर हो जाते हैं कि पूरी दुनिया बस इनकी ही चर्चा करती रहती है और कभी इतने गरीब दिखते हैं कि आम आदमी के घर के हर कोने में डोलते फिरते हैं। कभी टोकरी में बैठ जाते हैं तो कभी थैले में। अभी हाल ही में तो हालत यह हो गई थी कि सब्जी की दुकान पर कोई आवाज लगा देता कि भैया एक किलो टमाटर देना, तो सुनते ही लोगों की नजरें टमाटर पर नहीं, खरीदने वाले पर गड़ जाती थी।
अब हालात बदल रहे हैं। टमाटर भी अपनी औकात में आ रहा है। बोले- मैं कहता था न कि एक दिन आएगा कि टमाटरों का बाजा बजेगा और बज ही गया। चुनाव का मौसम आ रहा है तो ये भी रंग बदलने लगे हैं। लाल-लाल गाल वाले को देख टमाटर उन पर फिदा हुए जा रहे थे। चुनावी मौसम देख इनकी भी आस्था डोलने लगी है। पिछले काफी दिनों से देश भर में बस, केवल टमाटरों की चर्चा रही। समझ में नहीं आता कि आखिर इनमें है क्या जो लोग इनके पीछे पड़े रहते हैं। गलती तो अपनी ही है न। खुद ही सिर पर चढ़ा लिया था। ये टमाटर न हुए नेता हो गए, मौका देखते ही पाला बदल लिए। दिन तो सभी के आते हैं-चाहे लाल टमाटर हों या नेता।
बोलते-बोलते सरेखचंद जी दार्शनिक की मुद्रा में आ गए। बोले- टमाटरों के पीछे दौड़ लगाने वालों पहले यह तो देख लो कि टमाटर है किसका? टमाटरों को लेकर इतना हल्ला गुल्ला हो गया लेकिन शायद ही किसी ने जानने की कोशिश की हो आखिर जनमानस को झकझोर देने वाला टमाटर आया कहां से? इकई दिन से वह इसी खोजबीन में लगे थे। पता चला कि यह १६वीं शताब्दी में दक्षिण अमेरिका में पाया गया। टमाटर सबसे पहले दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वत पर मिला, वहां से पेरू और इक्वाडोर के रास्ते यह सबसे पहले मैक्सिको में घरेलू उपयोग में लिया गया, फिर स्पेनिश लोग टमाटर को यूरोप लेकर आए। पुर्तगालियों ने हमें इसका स्वाद चखाया। वह इसको लेकर भारत आए। बाद में अंग्रेजों के लिए यह उगाया जाने लगा। टमाटर को फ्रांसीसियों ने लव एप्पल कहा तो इटली ने इसे सुनहरा सेव बताया। यह भी जान लीजिए कि टमाटर एक फल है नाकि सब्जी। एक बार तो अमरीकी सरकार इस भ्रम में पड गई थी कि इसके उत्पादन व व्यापार पर सब्जी वाला टैक्स वसूला जाए या फल वाला, हालांकि बाद में कानून ने इसे सब्जी मान लिया, लेकिन यह वनस्पतिक विज्ञान के लिहाज से फल है।
वह बोले जा रहे थे-टमाटर एक बेल है और यह छह फीट तक ऊंचाई में चढ सकती है यदि इसे सहारा दिया जाए। इन्ही कारणों से टमाटर की चेरी, रोमा और सैन मार्जानों किस्में बेलों की तरह हैं जिनमे अंगूर की तरह गुच्छों में टमाटर लगते हैं। टमाटर का रंग मूल स्वरूप में पीले अथवा सोने के रंग की तरह होता था बाद में संकर प्रजातियां विकसित हुई और यह गाढे लाल रंग, नारंगी रंगों में तब्दील हुआ। इसे एक औषधीय पौधा कहा जाए जो उचित ही होगा। टमाटर में विटामिन बी6, विटामिन सी, विटामिन ए आयरन, पोटेशियम और अत्यधिक मात्रा में लायकोपीन होता है, लाइकोपीन टमाटर में रंग के लिए होता है, किन्तु यह जबरदस्त आक्सीडेंट है, जो कैंसर जैसी बीमारियों से लडने में मदद देता है। इसे अब उन्होंने अपनी बगीचे में भी लगा लिया है।
टमाटर की हालत यह हो गई थी कि यह घरों से निकलकर धरना-प्रदर्शनों में दिखाई देने लगा था। टमाटर उगाने वाले कई किसान लखपति ही नहीं करोड़पति हो गए। जबसे इनके रेट हाई हुए लोगों ने नेताओं को टमाटर मारना तक बंद कर दिया। रसोई चलाने वाली घरैतिनों ने टमाटरों के नखरे देख कहना शुरू कर दिया था- भाड़ में जाए टमाटर। अब आम आदमी की पहुंच में आने लगे हैं। अर्थशास्त्री भी हैरान हैं कि टमाटरों ने ऐसी कौन सी चाल चली कि उनकी सारी व्यवस्था ढेर हो गई।