May 18, 2011

राजनीति नहीं,चिंतन का समय

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857 में किसान मजदूर मिलकर भारतीय सिपाहियों के साथ अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर लडे। सिपाही भी किसान के तो बेटे थे लेकिन आज श्रम संस्कृति की जमीन पर एक भारतीय किसान आज हिंसक कैसे हो गया एक किसान जो रात दिन खेतों में काम करके सारे देश के भोजन का इंतजाम करता है, वह इतना स्वार्थी कैसे हो गया कि अब अपने सिवाय कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है । जिस किसान के हाथ में हल कुदाल फावडा जैसे उपकरण होते रहे अब आज अचानक उन हाथों में बंदूक कैसे पहुंच गई देश की रक्षा और सुरक्षा के लिए इसी देश में जब किसान को महत्वपूर्ण मानते हुए जय जवान के साथ ही जय किसान का नारा बुलंद हुआ था, तो किन परिस्थितयों के चलते आज उसी किसान के सीने जवानों की बंदूकों से छलनी हो रहे हैं सवाल बहुत है इनके जवाब खोजे जाने जवानों की बंदूकों से छलनी हो रहे है सवाल बहुत है इनके जवाब खोजे जाने है लेकिन देश की राजनीतिकों ने जैसे अन्य रास्तों पर देश का भविश्य और साख पर बट्टा लगाने का काम किया है ऐसे ही इन सवालों के जवाब खोने वालों को भी आज की राजनीति ने भटका दिया है। भारतीय किसान का रूप क्या है, पहले यह समझ लेना चाहिए फिर इस सवाल का ज वाब मांगा जाए वह कैसे भटक गया दरअसल भारतीय किसान परिश्रम सेवा और त्याग की जीवंत मूर्ति है उसकी सादगी सरलता उसके सात्विक जीवन को प्रकट करती है; किसानों की मेहनत को समझने के लिए यह लोकप्रय कविता काफी मौजू है नहीं हुआ है अभी सवेरा पूरब की लाली पहचान चिडियों के जगाने से पहले खाट छोड उठ गया किसान । किसान अन्नदाता कहा जाता है वह सूर्योदय से सूर्यास्त तक अनवरत काम करता है उनके काम करने के घंट सुनिष्चित नहीं हे संकट में पडने पर भी वह किसी से नहीं कहता ।अभाव के दर्द का कडवा घूंट पीकर रह जाता है उसके रहन-सहन में बडी सरलता और सादगी होती हे वह फैषन और आडम्बर की दुनिया से दूर रहता है उसका जीवन अनेक प्रकार के अभावों से घिरा रहता है अपनी सरलता और सीधेपन के कारण वह सेठ साहूकारों तथा जमीदारों के चंगुल में फंस जाता है वह सेठ साहूकारों तथा जमीदारों के चंगुल में फंस जाता है वह उनके षोशण में पिसता हुआा दम तोड देता हैै। मुंशी प्रेमचंद्र ने अपने उपन्यास गोदान में किसान की दयनीय dआशा का मार्मिक चित्रण किया है। किसान कुछ दोशों के होने पर भी दैवी गुणों से युक्त होता हैै । वह परिश्रम बलिदान त्याग और सेवा के आदर्ष से संसार का उपकार करता है ईष्वर के प्रति वह अवस्थवान है प्रकृति का पुजारी है धरती मां का उपासक है धन से गरीब होने पर भी वह मन का अमीर और उदार है। किसान अन्नदाता है वह समाज का सच्चा हितैशी है। उसके सुख में ही देष का सुख है। इस देष की खुषहाली का राज इसी में है कि देष की आबादी का 70 फीसदी किस्सा आज भी किसान है और उसी का नतीजा है कि देष पूरे विष्व का सिरमौर रहा है किसानों के इसी यप् ने देष को कभी सोने की चिाडिया तो कभी जगद्गूरू जैसें संबोधनों से जवाजा आज दर्द है तो केवल यह किसानों का यह रूप् आज कहां खो गया और उसके लिए कौन जिम्मेदार है खैर अब जो दिखाई दे रहा है,वह अत्यंत डरावना है खेती की जमीन घट रहीं है। किसान घट रहें और घट रहा है किसान का वह नैसर्गिक रूवरूप् जो इस देष की सिरमौर हुआ करता थ। भारतीय संविधान के निर्माताओं को षायदयह भान न रहा होगा कि देष के किसानों को कभी यूनियन बनाकर अपने हक की आवाज बुलंद करनी होगी। किसान जिस देष का मालिक कहा जाता था आज वह एक तरहासे तमाषाई बनकर रह गया है कभी किसी यूनियन के बैनर तले वह अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। किसान जिस देष का मालिक कहा जाता था, आज वह एक तरह से तमाषाई बनकर रह गया है। कभी किसी यूनियन के बैनर तले वह अपनी आवाज उठाने को मजबूर होता है तो कभी अपनी आने वाली पीढियों के भविश्य की चिंता करते हुए उसे अपने लिए आरक्षण की मांग करनी पडती है कभी अपनी जमीन की रक्षा के लिए आंदोलन करना पड़ता है तो कभी अपनी बनाई सरकों का कोपभजन बनना पड़ता आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ।किसानों के ही इस देष में आज देष कर्णधरों के सामने यह एक ज्वलंत सवाल है जिसका जवाब समय रहते उन्हें ढूंढ लना चाहिए,अन्यथा देष की आने वाली पीढी उन्हें कभी माफ नहीं करेगी। आने वाल पीढियों के भविश्य को लेकर किसानों के मन में बड़ी बेचैनी है और इसी बेचैनी का नीतजा है कि कभी वह रेल लाइनों पर धरना देकर बैठ जाता है तो कभी अपनी ही जमीन के लिए वह अपनी ही बनाई सरकार का कोपभाजन बन जाता है। यह विडंबना ही कि अपनी ही सरकार की गोलियां उसके सीने को छलनी कर रही है दरअसल देष की आजादी के बाद तरक्की की जो परिभाशा गढी गई उसने देष की दिषा ही बदल ही दी कही सड़कें बन रहीं है तो किसान की जमीन चाहिए। वहीं पावर हाउस बन रहे ह ै तो किसान की जमीन चाहिए लेकिन यह सोचा ही नहीं गया कि जिन किसानों की जमीन चली जाएगी उनका भविश्य क्या होगा उनकी आने वाली पीढियों का क्या होगा उनके गुजर बसर का पुख्ता इंतजमा नहीं किया गया। सवाल यह है कि यदि हम आज आपकी कोई संपति लेनाा चाह रहे है तो हम आपकों उसकी वाजिब किमत क्यों न दे ताकि उापकी आने वाली पीढ़ी भी उसके सहारे अपना गुजार बसर कर सके टकराव इसी बात को लेकर है देष की तरक्की के नाम पर छीना झपटी नहीं चलेगी यह षाष्वत सत्य है कि देष के हर नागरिक को रोटी खाने का अधिकर है। इसलिए सरकार को पहले उसकी व्यवस्था करनी चाहिए फिर उसकी जीविका के साधानों को उसे हस्तांतरित किया जाना चाहिएलेकिन देष की राजनीति ने इस षाष्वत और नैसर्गिक जरूरत को अपेक्षित कर यिा है इसीलिए राजनीति ने इस षाष्वत और नैसर्गिक जरूरत को उपेक्षित कर दिया है। लेकिन देष की राजनीति ने इस षाष्वत और नैसर्गिक जरूरत को अपेक्षित कर दयिा है। इसीलिए टकराव बढ रहा है आज नोएडा से लेकर आगरा तक संघर्श छिडा है। कल यह हवा और फैल सकती है होगा तो देष का ही नुकसान होगा। वह चाहे किसान का हो या सरकार का। षनिवार को नोएडा में हुए संघर्श में जो लोग मारे गए वह किसी न किसी किसान के बेटे ही होेंगे। इस क्षति से बचे जाने की जरूरत है और उसके लिए जरूरी है कि किसानों के साथ बैठकर ऐसी नीति बनाई जाए ताकि टकराव न हो और इसी से ही देष की तरक्की हो गति मिलेगी अन्यथा ऐसी तरक्की का कोई अर्थ नहीं होगा जो रक्तरंजित पथ से गुजरती हो किसानों ने आजादी स ेअब तक किसी भी देष की विकास वाले कार्यमें रोड़ा नहीं अटकाया लेकिन इधर एक दषक कसे अपनी जमीन स्वेच्छा से सार्वजनिक कार्यो के लिए देने वाला किसान ऐसा कैसे हो गया इस पर विचार करने की जरूरत है सिंगूर नंदीग्राम और नोएडा क्यों घटिता होता यह भी खोजबीन करने की जरूरत है कि मिाचल के पोंग बांध से लेकर अब तक किसानों कितना और मुआवजा मिला भविश्य में ऐसी कोई घटना न हो उसके लिए राजनीति नहीं चितन का समय है

May 16, 2011

छला जा रहा है आम आदमी

‘वरिष्ठ लेखक व साहित्यकार शंकर पुणताम्बेकर की एक लघु कथा हैं- ‘नाव चली जा रही थी। मझदार में नाविक ने कहा- नाव में बोझ ज्यादा है। कोई एक आदमी कम हो जाए तो अच्छा। नहीं तो नाव डूब जाएगी। अब कम हो जाए तो कौन हो जाए, कई लोग तो तैरना नहीं जानते थे। जो जानते थे। उसके लिए भी परले जाना खेल नहीं था। नाव में सभी प्रकार के लोग थे। डाक्टर, अफसर, वकील, व्यापारी, उद्योगपति, पुजारी, नेता के अलावा एक आम आदमी भी। डाक्टर, वकील, व्यापारी ये सभी चाहते थे कि आम आदमी पानी में कूद जाए। वह तैरकर पार जा सकता है, हम नहीं। उन्होंने आम आदमी से कूद जाने को कहा, तो उसने मना कर दिया। बोला मैं जब डूबने को हो जाता हूं तो आप में से कौन मेरी मदद को दौड़ता है, जो मैं आपकी बात मानूं। जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना तो ये लोग नेता के पास गए, जो इन सबसे अलग एक तरफ बैठा हुआ था। इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने के बाद कहा-आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा तो हम उसे पकड़कर नदी में फेंक देंगे। नेता ने कहा, नहीं-नहीं, ऐसा करना भारी भूल होगी। आम आदमी के साथ अन्याय होगा। मै देखता हूं उसे। मैं भाषण देता हूं। तुम लोग भी उसके साथ सुनो। नेता ने जोशीला भाषण आरम्भ किया जिसमें राष्ट्र, देश, इतिहास, परम्परा की गाथा गाते हुए देश के लिए बलि चढ़ जाने के आव्हान में हाथ ऊंचा कर कहा, हम मर मिटेंगे लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे, नहीं डूबने देंगे, नहीं डूबने देंगे। सुनकर आम आदमी इतना जोश में आया कि वह नदी में कूद पड़ा और, नाव डूबने से बच गई।’यह कथा आज के संदर्भ में आम आदमी की करूण गाथा को चित्रित करती है। ऐसी ही तस्वीर आज कुछ हमारे देश की भी है। वह बचना चाहता है तो लोग उसे डुबाना चाहते हैं। आज आम आदमी की बात सभी करते हैं। नेता, मीडिया, व्यापारी सभी। आम आदमी न हो तो देश का काम ही नहीं चल सकता। आम आदमी के हित के बारे में सभी सोचते हैं। वह आम आदमी ही है जो देश की सरकार बनाता है, सरकार गिराता है। वही है जो फैक्ट्रियों में हाड़-तोड़ मेहनत करता है। वह भी है जो खेतों में अनाज पैदा करता है और देश के और लोगों को खिलाने के लिए अपनी उपज मंडियों में दे आता है। आम आदमी की महत्ता के बारे में सोचा जाए तो कोई भी ऐसा काम नहीं है जो बिना उसके संपन्न हो सके। आम आदमी न हो तो रईशों की रईशी रह सकती है, न अमीरों की अमीरी, न ही चल सकती है नेताओं की राजनीति। यानि कि देश का सब कुछ यदि ठीक-ठाक चल रहा है तो आम आदमी के मजबूत कंधों पर। आम आदमी ही है जो सभी को शांति प्रदान करता है। वह तमाम समस्याओं की जड़ भी है और समाधान भी लेकिन इस आम आदमी की सच्ची तस्वीर कोई देखना ही नहीं चाहता। सत्ता के गलियारों में आम आदमी की खूब चर्चा होती है। सरकारों की तमाम योजनाएं आम आदमी के लिए बनती हैं। देश का बजट तैयार होता है तो उसमें सबसे ज्यादा यदि किसी का ध्यान रखा जाता है तो वह आम आदमी ही है। बजट ही उसके लिए बनता है। आम आदमी आज सबकी दुकानदारी चला रहा है। सबका टारगेट आम आदमी है, फिर भी वह किसी के टारगेट पर नहीं है। वह हर जगह छला जा रहा है। आम आदमी के मेहनती हाथों पर ही यह दुनिया टिकी हुई है। तुर्की के प्रसिद्व कवि नाजिम हिकमत की आम जनता को संबोधित एक कविता है- तुम्हारे हाथ और उनके झूठ। जिसमें कहा गया है कि यह दुनिया तुम्हारे हाथों पर टिकी है, गाय, बैल की सिंगों पर नहीं। इस संवेदनशील जनवादी कविता में आम आदमी की आशा और आकांक्षाओं को उसके श्रमिक हाथों की बुनियाद पर उकेरा गया है। इसी तरह मुंशी प्रेमचंद के घीसू और माधव तथा होरी के जिंदगी में आजादी के लंबे अर्से बाद भी सवेरा कहां आ पाया है। आम आदमी के प्रति संवेदनहीनता कम होेने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। आज जिनके कंधों पर यह जिम्मेदारी है, वे ही गैर जिम्मेदारी निभाते हुए जिम्मेदारी का आवरण ओढ़े सुख भोगते फिर रहे हैं। राजनीति में अनेक विसंगतियां दिखाई देती हैं। आम आदमी की बात करने वाले नेता उससे इतनी दूरी बनाकर रखते, हैं, जहां से वह दिखाई तो देता है लेकिन उसकी आवाज वहां तक नहीं पहुंचती। इसके लिए अब मध्यस्थ की जरूरत पड़ने लगी है। इस मध्यस्थता ने ही आम आदमी को सबसे ज्यादा छला है। आम आदमी की बात करने वाले नेता के सामने ही उसके हितों की बलि चढ़ाई जा रही है। नाव से कूद जाने की परिस्थितियां उत्पन्न की जा रही हैं।आम आदमी के लिए जिस आदर्श की बात की जाती है, वे आदर्श ही खोखले और अनैतिक नजर आते हैं। ऐसे में उसके सामने समाज और देश की कैसी तस्वीर उभर सकती है। भरोसा यह है कि वही इन परिस्थितियों से उबारने में सक्षम है लेकिन वह विवश है गहरे पानी में कूद जाने को। देखा जाए तो आज जो कुछ चल रहा है, उसके पीछे आम आदमी की ताकत ही है। अस्पताल, कालेज, मंड़ी सब कुछ। भ्रष्टाचार, आतंक, गरीबी, भुखमरी जैसे अनेक थपेड़े उस पर रोज पड़ रहे हैं। आज वह इनसे खुद को टूटा हुआ महसूस करने लगा है इसी बीच एक आवाज आती है अन्ना हजारे की। उस आवाज में आम आदमी को अपनी आवाज सुनाई देती है तो वह उस आवाज में अपनी आवाज मिलाने बैठ जाता है। यह तारतम्य कब तक बना रहेगा, उसे भी नहीं पता।बात मीडिया की करते हैं तो आम आदमी वहां भी छला जाता दिखाई देता है। वहां पहले भी आम आदमी की बात की जाती थी और आज भी। बस उसका नजरिया बदल गया है। जबसे मीडिया का नजरिया बदला है, तबसे आम आदमी भी उसे दूसरी नजर से देखने लगा है। अब मीडिया आम आदमी को एक बाजार के रूप में देखने लगा है। यह आम आदमी का अधुनातन रूप है। वह आज एक सवाल बन गया है। ऐसा सवाल जिसका हल भी वह खुद है। आम आदमी तो अर्से से नैया न डूबने देने की कोशिश में अपने को कुर्बान करता आ रहा है लेकिन जो समर्थ और खास लोग हैं, वे उस कुर्बानी को भी स्वार्थ और लालच में भूलते जा रहे हैं और ऐसा नहीं कि यह भुलक्कड़ी अंजाने में हो रही हो बल्कि सब कुछ पूरे होशो-हवाश में घटित हो रहा है।
-सन्तराम पाण्डेय



May 5, 2011

अवैध कमेले की काली सत्‍ता और सिसकता न्‍याय
Wednesday, 04 May 2011 17:32 डा. नूतन ठाकुर भड़ास4मीडिया - हलचल

: हाजी याकूब कुरैशी और हाजी अखलाख के संरक्षण में चल रहा है यह कारोबार : मैं एक ऐसी समस्या से आप सभी लोगों को रूबरू कराना चाहती हूँ, जिसके बारे में अभी मेरठ के बाहर बहुत कम लोग जानते हैं, पर जब अपने आप में बहुत ही गंभीर और खतरनाक समस्या है. यह मामला है मेरठ के कमेले का. कमेला मेरठ में जानवरों का कटान करने वाला स्थान को कहते है.
यह मेरठ शहर के बाह्य इलाके में हापुड रोड पर स्थित है, यह ग्राम माफ़ी दमवा के खसरा सं0-3703 व 3708 पर स्थित है, जो मेरठ नगर निगम की जमीन है. इस तरह मूल रूप से यह कमेला मेरठ नगर निगम की सम्पत्ति है.
कमेले (पशु वधशाला) में किस प्रकार कार्य होना चाहिये, को ले कर बहुत सारे स्पष्ट नियम बनाये गए हैं. सैद्धान्तिक व कानूनी रूप से कमेले को यथा सम्भव साफ सुधरा रखा जाना चाहिये ताकि वह स्वच्छता के माप-दण्ड पूरा कर सकें. इसके साथ ही वहां जानवरो को इस प्रकार से काटा जाये जिससे किसी प्रकार का स्वच्छता सम्बन्धी खतरा उत्पन्न न हो. यह निर्देशित है कि यहॉं मात्र स्थानीय आपूर्ति के लिये कटान किया जाये, अतः यहाँ केवल वही लोग जानवरो को कटवाने के लिये जा सकते हैं जिनको उनका मॉंस बेचने का लाइसेन्स प्राप्त हो. कमेला या तो नगर निगम के द्वारा स्वयं संचालित किया जाये अथवा किसी अधिकृत ठेकेदार द्वारा नियमानुसार शुल्क जमा करने के बाद संचालित किया जाये.
जो जानवर इन कमेलों में लाये जाते है, उनकी मृत्यु पूर्व परीक्षण अवश्य किया जाये, जिससे उनके बारे में स्पष्ट जानकारी हो सकें. मुसलमानों के लिये उपयोग में लाये जाने वाले मांस के लिये इस्लाम की रीति के अनुसार हलाल खाद्य बनाने के लिए जबह की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिये. जबह की प्रक्रिया में जानवर के गले पर एक धारदार हथियार से काफी तेज व गहरा घाव किया जाता है जिसमें कई सारी बातों का ध्यान रखा जाता है. जानवर की मृत्यु के बाद उसका पोस्टमार्टम परीक्षण होना चाहिये.
इसके साथ ही प्रत्येक कमेले में एक ईटीपी प्लान्ट (एक्यूमेन्ट ट्रीटमेन्ट प्लान्ट) होना चाहिये. यह प्लांट दृव्य को साफ करने वाला होता है. इसमें खून, गन्दा पानी और शेष जल इत्यादि डाले जाते है, जिससे यह उसे साफ करके शुद्ध जल प्रदान करता है. इसके अलावा एक टेण्डरिंग प्लान्ट होना चाहिये. टेण्डरिग प्लान्ट सॉलिड वेस्ट मेन्जमेन्ट के लिये है. यह सभी ठोस अवशेष डाले जाते है और यह प्लान्ट उन्हें पर्यावरण के लिये हानिरहित बना देता है.
एक कमेले में अधिकतम 350 जानवरों का कटान अनुमन्य है. वह भी केवल वही जानवर काटे जा सकते है जो दुधारू न हो, जिनका कोई अन्य उपयोग न हो, जो बूढ़े हो गये हों और बीमार भी न हों. यह सब एक पशु चिकित्सक द्वारा जॉंचा जाता है जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है. यह नियम किया गया है कि पशु चिकित्सक द्वारा अधिकतम 96 जानवर ही एक दिन में जॉंचे जा सकते हैं.
इन नियमों के विपरीत सबसे बड़ा प्रश्न है कि मेरठ में वर्तमान स्थिति क्या है? सच्चाई यह है कि मेरठ में कमेला उप्र राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा बन्द किये जाने के निर्देश दिये गये हैं. इस तरह से सरकारी अभिलेखों के अनुसार मेरठ का कमेला बन्द है फिर भी खुले आम अवैध तरीके से चलाया जा रहा है. इस तरह मेरठ नगर निगम की जमीन पर कब्जा करने कुछ अत्यन्त प्रभावशाली ताकतवर लोगो द्वारा पूर्णतः अवैध ढंग से यह गलत कार्य किया जा रहा है, जिसमें जानवरों को अत्यन्त ही घृणित, दूषित और अत्याचारी ढंग से काटा जा रहा है.
इस तरह जानवरों को काटने वाले लोग किसी भी नियम व कानून का पालन नहीं कर रहे है. कमेले में न कोई पशु चिकित्सक है, कोई ईटीपी प्लान्ट ही काम कर रहा है, पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर चिन्ता नहीं है, अधिकत्म 350 के स्थान पर 3-4 हजार कटान रोज हो रहे हैं. जानवरों को काटे जाते समय न तो एन्टी मार्टम, पोस्टमार्टम ही हो रहा है. इस्लामी नियम के अनुसार जबह प्रकिया का बिल्कुल पालन नहीं हो रहा है. दुधारू व काम लायक जानवर भी खूब काटे जा रहे हैं.
उन जानवरों के खून, शरीर के हिस्से, मॉंस के लोथडे, चर्बी, आन्तरिक अंग और अन्य बेकार की चीजे बहुत ही गन्दें तरीके से आस-पास के वातावरण में छोड़ दी जाती है. इन जानवरों की हड्डी खुली भट्टी में जलाई जा रही है, जिनसे कमेले के आस-पास 8 से 10 किलोमीटर में बहुत दुर्गन्ध आती है.
इस तरह खून, शरीर के अंग, अवशेष आदि के आस-पास खुली नालियो में बहने के कारण काफी पर्यावरण प्रदूषण फैल रहा है. खून और अन्य अवशेष पास ही की काली नदी में जा रहे हैं, जिसके कारण व नदी इतनी प्रदूषित हो गई है कि वह मानव के लिये पूर्णतः अनुपयोगी हो गयी है. काली नदी आगे चलकर गंगा नदी में मिल जा रही है. इस कारण गंगा नदी भी प्रदूषित हो रही है. खुले-आम मॉंस के लोथड़े और शरीर के टुकड़ों से यहॉं-वहॉं फैलने से कई तरह की बीमारियॉं व स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या हो रही है. खुले नाले में शरीर के टुकडें, खून, अवशेष के बहने से बहुत ही वीभत्स दृश्‍य दिखता है. जिस प्रकार एन्टीमार्टम व पोस्टमार्टम को बिना कराये मॉंस को बेच दिया जाता है, उससे कई प्रकार की बीमारियॉं, स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरों को होना सम्भव है.
चूंकि इस्लाम द्वारा निर्देशित जबह प्रक्रिया का अनुपालन नहीं हो रहा है और वह मांस मुसलमानों को दिया जा रहा है, इससे उनकी धार्मिक भावना से खिलवाड़ हो रहा है. यह पूरी प्रक्रिया बहुत ही गन्दे तरीके से भ्रष्ट उपायों को अपना कर की जा रही है, जिससे भ्रष्टाचार को सीधे-सीधे बढ़ावा मिल रहा है और स्थानीय प्रशासन के तमाम स्थानीय उच्च अधिकारी जिसमें मंडलायुक्त, जिला मजिस्ट्रेट, नगर आयुक्त, स्थानीय उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी आदि कोई भी शामिल हो सकते है, अपने अन्य कनिष्ठ अधिकारी मिलकर इस अवैध कटान को संचालित कर रहे हैं, जिससे भारी मात्रा में काला धन पैदा हो रहा है.
इस पूरी प्रक्रिया में सरकार का भारी नुकसान हो रहा है. यद्यपि इस कमेले से निकलने वाला मांस विदेशों को निर्यात हो रहा है, लेकिन उसपर न तो कस्टम और ना ही एक्साईज ड्यूटी दिया जा रहा है तथा सरकारी धन का नुकसान हो रहा है. स्थानीय प्रशासन इस मामले में पूरी तरह चुप है, क्योंकि जो व्यक्ति इस कमेले को चला रहे हैं, वह राजनैतिक रूप से काफी ताकतवर हैं और हमेशा सत्ताधारी दलों के साथ रहते है. अतः जिला प्रशासन हमेशा अपनी जान बचाने के लिये इनके साथ रहता है. इनमें खास कर स्थानीय विधायक और बसपा नेता हाजी याकूब कुरैशी तथा बसपा से सपा और अब पुनः बसपा में आये हाजी अख़लाक़ के नाम प्रमुख हैं. फिर यह लोग भारी मात्रा में अवैध पैसा भी अधिकारियों को देते हैं, जिसके कारण यह लोग ऑंख मूंद लेते हैं.
इस मामले में इस प्रकार से जानवरों को ट्रकों तथा अन्य वाहनों से सारे नियम को दरकिनार करके एकदम ठूंस कर लाया जाता है व वास्तव में अत्यन्त चिन्ताजनक है और पशु क्रूरता से सम्बन्धित नियमों का खुला उल्लंघन है. कई बार तो यह जानवर लाद कर लाने की प्रक्रिया में ही दबकर मर जाते हैं. इस विषम स्थिति से निपटने के लिए स्थानीय लोग ना जाने कई बार लामबंद हुए हैं, पर हर बार पैसे और ताकत के मोल से कमेले के ठेकेदारों ने इन लोगों के संघर्षों को समाप्त करते हुए अपना काला धंधा बरक़रार रखा है. अभी इन दिनों भी मेरठ में कमेले को ले कर विरोध हुआ है, चार-पांच दिन पहले हुए दंगे में भी इसी कमेले की प्रमुख भूमिका मानी जाती है. इसे लेकर कई सारी रिट भी हाई कोर्ट में पेंडिंग है पर वहाँ से भी फैसला नहीं आ सकने के कारण अब तक कोई न्याय नहीं मिल सका है.
यह एक ऐसी गंभीर समस्या है जिस पर हर किसी को ध्यान देना और इसे दूर-दूर तक फैला कर ध्यानाकर्षण करना आवश्यक होगा. आईआरडीएस और नेशनल आरटीआई फोरम की तरफ से हम लोग स्थानीय अधिवक्ता और सामाजिक रूप से जुझारू संदीप पहल के साथ मिल कर इस मुद्दे पर काम करने में आगे बढे़ हैं. अभी प्रारम्भ में हम इस मुद्दे से बाहर के लोगों को जागरूक करने और जोड़ने का काम कर रहे हैं. हमने इसके लिए निम्न दो ब्लॉग भी शुरू किये हैं - http://kamelameeruthindi.blogspot.com/ एवं http://kamelameerut.blogspot.com/. यह एक व्यापक और कठिन लड़ाई है लेकिन इसमें बिना हार-जीत की चिंता किये लड़ा जाना बहुत जरूरी है.

May 1, 2011

निर्मल जी की कविता

पहला सबक
हाथ में गुलेल लिएएक शैतान बच्चागुजरा
गली सेऔर
गली के पुरानेमेहराबदार
मकानों कीमुँडेरों पर पसरे
कबूतरफुर्र से उड़ेऔर
गायब हो गएआकाश की
गहराइयों में कहींबस,
एक कौआ बैठा रहाघर
की अलगनी मेंकाँव-काँव
करताबच्चे को चिढ़ाता
कौआ जानता है-गुलेल से
पत्थर फेंकने कीसंपूर्ण प्रक्रियाशैतान
बच्चे कीलक्ष्यवेधी क्षमताऔर
आपातकाल मेंआपने बचाव के उपाय
कबूतर जानते हैं-भरपेट दाना
चुगनागुटरगूँ-गुटरगूँ करनाऊँचे
आकाश में उड़ान भरनाऔर
तीव्र गति से फेंके गएपत्थर
सेआहत हो धरती पर गिर
जानाइसके सिवा कुछ भी नहीं
मासूम कबूतरों की मृत देहों के
सहारेपरवान चढ़ी हैशैतान
बच्चे की क्रूरताअब उसकी
निगाहफुर्र से उड़ जानेवाले
कबूतरों पर नहींकौए की
चतुराई पर टिकी हैबच्चा
सीख रहा हैगुलेल को
पीठ के पीछेछुपाकरअपने
मासूम चेहरे कोमासूमियत
से ढाँपदुनियादार होने का पहले सबक

जल ही जीवन है

पृथ्वी पर पहला जीव जल में ही उत्पन्न हुआ था। जल इस युग में अनमोल है। ऐसा नहीं है कि इसी युग में पानी की अत्यधिक महत्ता प्रतिपादित की गई है, वरन हर युग में पानी का अपना महत्व रहा है। तभी तो रहीम का यह पानीदार दोहा हर एक की जुबान पर आज तक जीवित है-रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।हमारा देश कृषि प्रधान देश है जहाँ खास तौर से ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका एवं अर्थव्यवस्था का एकमात्र साधन कृषि ही है। कृषि सिंचाई पर निर्भर करती है और सिंचाई का प्रमुख प्राकृतिक स्रोत नदियाँ ही होती है। प्रदेश में नदियों का जाल जैसा बिछा हुआ है। समुद्री जल विश्व में उपलब्ध समस्त जल स्रोतों का 97 प्रतिशत है जो उपयोग योग्य नहीं है। उपयोग के लिए केवल 3 प्रतिशत जल ही उपलब्ध है जिसका विश्व की इतनी विशाल जनसंख्या इस्तेमाल करती है। संसार की सभी वस्तुओं में जल सर्वोत्तम है। ऐसी यूनानी मान्यता है। जल को इसीलिए जीवन का पर्याय माना गया है। उपयोग योग्य तीन प्रतिशत जल बढ़ती हुई जनसंख्या की प्यास बुझाने और अन्य उपयोग की आपूर्ति करने में पर्याप्त नहीं है।
आज सभी को जल बचाव के लिए जुट जाना चाहिए । क्योंकि बिना जल के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती ।