Sep 1, 2023

 

रचना: माँ

-संतराम पाण्डेय-

माँ जानती है, माँ ही जानती है

जिंदगी की हकीकत

वह जानती है कि

कल जब मैं नहीं होऊंगी

ये अकेले ही खड़ा होगा

जिंदगी के कुरुक्षेत्र में

वह घिरा होगा

तमाम अलाओं-बलाओं से

उसके काम आएगी

मेरी आज की तैयारी।

 

वह माँ ही है

जो बन जाती है

अपनी संतान की प्रथम गुरु

और सिखाती है

जिंदगी से जूझने के

हर पेंचोखम जीत की

वह बन जाती है

एक कुशल ट्रेनर

और

अपनी संतान को पारंगत कर

दे देती है आदेश

जा, जा, जा मेरे लाल

मेरी लाडो लड़ दुनिया की

हकीकतों से और

बन जा कुरुक्षेत्र

का वॉरियर।।

 

माँ, एक हकीकत है

एक नायाब तोहफा है

परमपिता का

एक जीती जागती देवी है

इस नश्वर संसार में

जो अर्चन है

अर्जन है

सर्जन है

समर्पण है

माँ ही है जो केवल

वक्त की पुकार पर

नश्वर देह त्यागती है

नहीं त्यागती अपनी संतति।।

 

माँ के खूंटे से बंधे रहने का

सौभाग्य मिलता है विरलों को

माँ का स्मरण है

परमपिता के स्मरण सम

वह

पूजनीया है, नमनीया है

और है

प्रातः स्मरणीया।।

प्रातः नमनीया।।

Aug 26, 2023

 भगवान जी का इंटरव्यू

- संतराम पाण्डेय -
कुछ सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हो, इसके पहले थोड़ा अपने बारे में बताइये प्रभु।
खुदा- मैं सर्वज्ञ हूं। सर्व शक्तिमान हूं। तुममें हूं। पेड़ पौधों में भी हूं। मैं ही सवाल हूं, मैं ही जवाब हूं। सबका नियंता हूं। मैं चराचर में हूं। आकाश में हूँ- पाताल में हूं। नभ में हूँ। जल और थल में हूँ। कोई ऐसी जगह नहीं, जहां मैं नहीं हूं।
सवाल- आप सर्वज्ञ हैं, तो बताइए मैं कहाँ हूँ।
(बात बीच में ही काटकर), मेरी परीक्षा मत ले पत्रकार। तुम मेरठ में हो। यह वही स्थान है, जहां मैंने द्वापर में कौरव/ पांडवों का महाभारत देखा था। तू उस धरती पर खड़ा है, जहाँ राजा धृतराष्ट्र की भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण हुआ था और मैं ही दौड़ा-दौड़ा आया था। अरे वही, जिसे तुम लोग आज भी हस्तिनापुर के नाम से जानते हो।
......फिर महाभारत का संग्राम हुआ था। युद्ध स्थल कुरुक्षेत्र में मैंने ही गीता का ज्ञान कराया था।
मान गए प्रभु। बताइये आपको कितने नामों से पुकारा जाता है और क्यों? एक नाम से काम नहीं चल सकता क्या? आप कंफ्यूजन क्यों पैदा करते हो?
तुम बुद्धिमान लगते हो। मैं कंफ्यूजन नहीं पैदा करता। मुझसे दूर होकर तुम लोग खुद कंफ्यूजन में पड़ गए हो। मैं ही खुदा हूँ। मैं ही ईश्वर हूँ। मैं ही गॉड हूँ तो मैं ही परमपिता परमेश्वर हूँ। मैं तो एक ही हूँ.... अनेक नाम तो तुम लोगों ने अपनी सुविधा के लिए रख लिए हो। कंफ्यूजन में तो मैं पड़ जाता हूँ। मुझे तो सबकी सुननी है। मैं अपने हर बंदे के पास हूँ। वह मुझे बुलाये या न बुलाये...उसकी खबर मुझे रखनी ही होती है। सब जीव जंतु, निर्जीव-सजीव सबमें मैं ही हूँ। मैं खुद आता हूं अपने बंदों के पास। मैं ही दाता हूं। मैं ही हर्ता हूं। कोई मांगे या ना मांगे, मैं अपने बंदों को दुखी नहीं देख सकता।
मैं फिर आपकी बात बीच में काटकर पूछता हूं। सॉरी, ... यह बताइए कि जब आप ही दाता हो तो किसी को इतना भी नहीं देते कि वह अपनी दो वक्त की रोटी खा सके और किसी को इतना देते हो कि उससे संभलता ही नहीं है। कोई थोड़ा सा कर्ज होने पर चिंता में फांसी पर झूल जाता है तो कोई माल्या और नीरव निकलता है। देने का यह कौन सा फार्मूला है आपका? आप ही नियंता हो तो आजकल देश को विकास देने की बात करने वाले समोसे और छोले भटूरे में फंसे हैं। उन्हें नियंत्रित करने में आप फेल क्यों हैं प्रभु?
प्रभु मुस्कुराते हैं...। (मैं देख तो नहीं पाता लेकिन शत प्रतिशत उनके मुस्कुराने का एहसास होता है।) बोलते हैं....
तुम मनुष्यों की समझ में नहीं आएगा। तुम मनुष्य हो। यह बड़ा गूढ़ और गोपनीय रहस्य है। लेकिन तू पूछ ही रहा है तो मैं बताता हूं। ठीक वैसे ही जैसे अर्जुन ने कुरुक्षेत्र के मैदान में मुझसे पूछा था तो उसकी शंका का समाधान करना मेरा फर्ज था। तो सुन...
मैं गीता में बता चुका हूं कि कर्म प्रधान है। बिना कर्म के मैं कुछ नहीं दे सकता। जो जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही मिलेगा। पहले सवाल का जवाब सुन। आज जिसे तुम लोग भगोड़ा कहने पर तुले हो उसने कर्म ही ऐसा किया कि मुझे देना पड़ा। और अब जैसा कर्म करेगा, वैसा ही उसे आगे मिलेगा। दूसरी बात यह कि समोसा-छोला भटूरा व्यंजन है। तुम्हीं लोगों ने बनाया है तो भुगतो।
मैंने फिर बीच में टोका- ये तो कोई बात नहीं हुई। अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए, सबके दाता राम। फिर ऐसा क्यों कहा गया? आप पर बिना कुछ करने वाले को देने के आरोप लग चुके हैं प्रभु। मुझे आप बरगलाओ मत। आप किसी को मालामाल बना देते हो तो किसी को कंगाल। जो 24 घंटे आपको याद रखता है। कठिन परीश्रम करता है। उसे दो वक्त की रोटी ही बड़ी कठिनाई से देते हो और किसी को इतना देते हो कि उससे संभलता ही नहीं, वह भटक जाता है। ये ठीक नहीं है प्रभु!
प्रभु फिर मुस्कुराए...। बोले- यही तो रहस्यवाद है। तुम लोग कभी समाजवाद के चक्कर में पड़े रहते हो, कभी भोगवाद के। कभी साम्यवाद को ढोते फिरते हो तो कभी जातिवाद को। कभी संप्रदाय के फेर में पड़ते हो। मेरा रहस्यवाद तुम समझना ही कहां चाहते हो। जिस दिन इसे समझ जाओगे, ऐसे आरोप नहीं लगाओगे।
अच्छा प्रभु, एक सवाल- आप कर्म की बात करते हो। कौन सा और कैसा कर्म है जिसे करने से आप देने को विवश हो जाते हो। बताइए ताकि लोग, वैसा ही कर्म करें।
मुझे फंसाना चाहता है! मैं फंस नहीं सकता। सदकर्म तो तुम मनुष्यों को खुद ही तय करना होगा कि क्या करो। मैंने अपने जैसा, अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में तुम मनुष्यों को बनाया। बुद्धि और विवेक दिया। इसी लिए कि अच्छे और बुरे में फर्क कर सको लेकिन तुम लोग तो बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल ही नहीं करना चाहते। मन को जो अच्छा लगता है, वहीं कर डालते हो। यह ठीक नहीं है। बुद्धि और विवेक मैंने मन को नियंत्रित करने के लिए दिया लेकिन तुम उसका इस्तेमाल ही नहीं करते हो।
प्रभु, ऐसा लोग जरा-जरा सी बात पर क्यों मारकाट मचा देते हैं। अपनों को ही मार डालते हैं। अभी भारत बंद क्या किया, कितनों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। ऐसा क्यों हो रहा है? आप सद़बुद्धि क्यों नहीं देते?
प्रभु थोड़ा गंभीर हुए। बोले- जिसको जो काम सौंपा गया, वह वही नहीं कर रहा है, बाकी सब कुछ कर रहा है। कर्मयोग का तुम मनुष्यों ने बड़ा नायाब फार्मूला निकाल लिया है जिससे अपना हित साध रहे हो। यही तुम लोगों की परेशानी का कारण है।
अच्छा प्रभु- एक बात बताइए- कुछ लोग आपके अस्तित्व को ही नकारते हैं। यह भ्रम क्यों? अपने अस्तित्व को लेकर थोडा स्पष्ट कीजिए।
तुम मनुष्यों की आदत बड़ी खराब है। बाल की खाल निकालते हो। अच्छे कर्म करो। कन्फ्यूज मत हो। कोई माने या न माने- मैं हूं तो हूं।
प्रभु एक अंतिम सवाल- अपने बंदों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
संदेश देने का काम मेरा नहीं। इस काम की जिम्मेदारी जिसे दी, वही या तो कारागार में है या वहां जाने की जल्दी में है।
धन्यवाद भगवान जी। कृपा बनाए रखना प्रभु।

Aug 20, 2023

 20.08.2023

रिमांड पर टमाटर

-संतराम पाण्डेय-

आज सरेखचंद जी टमाटर पर बरस रहे थे। बगल में ही बैठा निरहुआ टमाटर की तरह लाल हुआ जा रहा था कि जब टमाटर औकात में गए हैं तो साहब जी टमाटरों को क्यों रिमांड पर लिए हैं लेकिन सरेखचंद जी आज टमाटरों पर बरसे जा रहे थे। जबसे उनको चुनाव लडऩे की सूझी, हर बात में उनको राजनीति दिखने लगी। अब टमाटरों में राजनीति देख रहे हैं। दल बदलते लोगों पर निशाना साधते हुए बोले-जिसका कोई ईमान-धरम नहीं, वह टमाटर हो गया। इन टमाटरों का क्या, कभी हरे, कभी पीले तो कभी लाल। ये कभी रुपए किलो बिकते हैं तो कभी डेढ़ सौ पर भी नहीं रुकते। बहुत रंग बदलते हैं। इनके आगे तो अब गिरगिट भी मात खाने लगा है। ये कभी इतने अमीर हो जाते हैं कि पूरी दुनिया बस इनकी ही चर्चा करती रहती है और कभी इतने गरीब दिखते हैं कि आम आदमी के घर के हर कोने में डोलते फिरते हैं। कभी टोकरी में बैठ जाते हैं तो कभी थैले में। अभी हाल ही में तो हालत यह हो गई थी कि सब्जी की दुकान पर कोई आवाज लगा देता कि भैया एक किलो टमाटर देना, तो सुनते ही लोगों की नजरें टमाटर पर नहीं, खरीदने वाले पर गड़ जाती थी।

अब हालात बदल रहे हैं। टमाटर भी अपनी औकात में रहा है। बोले- मैं कहता था कि एक दिन आएगा कि टमाटरों का बाजा बजेगा और बज ही गया। चुनाव का मौसम रहा है तो ये भी रंग बदलने लगे हैं। लाल-लाल गाल वाले को देख टमाटर उन पर फिदा हुए जा रहे थे। चुनावी मौसम देख इनकी भी आस्था डोलने लगी है। पिछले काफी दिनों से देश भर में बस, केवल टमाटरों की चर्चा रही। समझ में नहीं आता कि आखिर इनमें है क्या जो लोग इनके पीछे पड़े रहते हैं। गलती तो अपनी ही है न। खुद ही सिर पर चढ़ा लिया था। ये टमाटर हुए नेता हो गए, मौका देखते ही पाला बदल लिए।  दिन तो सभी के आते हैं-चाहे लाल टमाटर हों या नेता।

बोलते-बोलते सरेखचंद जी दार्शनिक की मुद्रा में गए। बोले- टमाटरों के पीछे दौड़ लगाने वालों पहले यह तो देख लो कि टमाटर है किसका? टमाटरों को लेकर इतना हल्ला गुल्ला हो गया लेकिन शायद ही किसी ने जानने की कोशिश की हो आखिर जनमानस को झकझोर देने वाला टमाटर आया कहां से? इकई दिन से वह इसी खोजबीन में लगे थे। पता चला कि यह १६वीं शताब्दी में दक्षिण अमेरिका में पाया गया। टमाटर सबसे पहले दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वत पर मिला, वहां से पेरू और इक्वाडोर के रास्ते यह सबसे पहले मैक्सिको में घरेलू उपयोग में लिया गया, फिर स्पेनिश लोग टमाटर को यूरोप लेकर आए। पुर्तगालियों ने हमें इसका स्वाद चखाया। वह इसको लेकर भारत आए। बाद में अंग्रेजों के लिए यह उगाया जाने लगा। टमाटर को फ्रांसीसियों ने लव एप्पल कहा तो इटली ने इसे सुनहरा सेव बताया। यह भी जान लीजिए कि टमाटर एक फल है नाकि सब्जी। एक बार तो अमरीकी सरकार इस भ्रम में पड गई थी कि इसके उत्पादन व्यापार पर सब्जी वाला टैक्स वसूला जाए या फल वाला, हालांकि बाद में कानून ने इसे सब्जी मान लिया, लेकिन यह वनस्पतिक विज्ञान के लिहाज से फल है।

वह बोले जा रहे थे-टमाटर एक बेल है और यह छह फीट तक ऊंचाई में चढ सकती है यदि इसे सहारा दिया जाए। इन्ही कारणों से टमाटर की चेरी, रोमा और सैन मार्जानों किस्में बेलों की तरह हैं जिनमे अंगूर की तरह गुच्छों में टमाटर लगते हैं। टमाटर का रंग मूल स्वरूप में पीले अथवा सोने के रंग की तरह होता था बाद में संकर प्रजातियां विकसित हुई और यह गाढे लाल रंग, नारंगी रंगों में तब्दील हुआ। इसे एक औषधीय पौधा कहा जाए जो उचित ही होगा। टमाटर में विटामिन बी6, विटामिन सी, विटामिन आयरन, पोटेशियम और अत्यधिक मात्रा में लायकोपीन होता है, लाइकोपीन टमाटर में रंग के लिए होता है, किन्तु यह जबरदस्त आक्सीडेंट है, जो कैंसर जैसी बीमारियों से लडने में मदद देता है। इसे अब उन्होंने अपनी बगीचे में भी लगा लिया है।

टमाटर की हालत यह हो गई थी कि यह घरों से निकलकर धरना-प्रदर्शनों में दिखाई देने लगा था। टमाटर उगाने वाले कई किसान लखपति ही नहीं करोड़पति हो गए। जबसे इनके रेट हाई हुए लोगों ने नेताओं को टमाटर मारना तक बंद कर दिया। रसोई चलाने वाली घरैतिनों ने टमाटरों के नखरे देख कहना शुरू कर दिया था- भाड़ में जाए टमाटर। अब आम आदमी की पहुंच में आने लगे हैं। अर्थशास्त्री भी हैरान हैं कि टमाटरों ने ऐसी कौन सी चाल चली कि उनकी सारी व्यवस्था ढेर हो गई।