भाग –एक: काव्य संग्रह
1. माँ
माँ जानती है,
माँ ही जानती
है
जिंदगी की हकीकत
वह जानती है कि
कल जब मैं
नहीं होऊंगी
ये अकेले ही खड़ा
होगा
जिंदगी के कुरुक्षेत्र
में
वह घिरा होगा
तमाम अलाओं-बलाओं से
उसके काम आएगी
मेरी आज की
तैयारी।
वह माँ ही
है
जो बन जाती
है
अपनी संतान की प्रथम
गुरु
और सिखाती है
जिंदगी से जूझने
के
हर पेंचोखम जीत की
वह बन जाती
है
एक कुशल ट्रेनर
और
अपनी संतान को पारंगत
कर
दे देती है
आदेश
जा, जा, जा
मेरे लाल
मेरी लाडो लड़
दुनिया की
हकीकतों से और
बन जा कुरुक्षेत्र
का वॉरियर।।
माँ, एक हकीकत
है
एक नायाब तोहफा है
परमपिता का
एक जीती जागती
देवी है
इस नश्वर संसार में
जो अर्चन है
अर्जन है
सर्जन है
समर्पण है
माँ ही है
जो केवल
वक्त की पुकार
पर
नश्वर देह त्यागती
है
नहीं त्यागती अपनी संतति।।
माँ के खूंटे
से बंधे रहने
का
सौभाग्य मिलता है विरलों
को
माँ का स्मरण
है
परमपिता के स्मरण
सम
वह
पूजनीया है, नमनीया
है
और है
प्रातः स्मरणीया।।
प्रातः नमनीया।।
2. नमस्ते दीदी!!
स्कूल जाते हुए
वह
रोज हमें कहता
था
नमस्ते दीदी,
मैं चुप होकर
बस उसे देखती
रहती थी।।
पढऩे में होशियार
था
हर बार अव्वल
आता था
वह बड़ा था
उम्र में
हमसे कई साल
फिर भी कहता
था
नमस्ते दीदी!!
मैं बड़ी हो
गई
स्कूल छूटा कालेज
आ गई
सखी और दोस्त
बने
पर कोई न
मिला
जो कहे
नमस्ते दीदी!!
फिर एक दिन
खड़ी थी स्टापेज
पर
ढलती शाम, लग
रहा था डर
उसके दो शब्द
अब भी
गूंज रहे थे
मस्तिष्क में
नमस्ते दीदी!!
वहां कोई न
था, बस
कुछ मनचले थे वहां
जो कर रहे
थे छींटाकशी
तभी वह अचानक
आया
और बोला
नमस्ते दीदी!!
वह था बाइक
पर
लगाए था हेलमेट
मैं पहचान न सकी
लेकिन न जाने
क्यों
अहसास जगा, कानों
में गूंजा
नमस्ते दीदी!!
तभी उसने कहा
साधिकार
बैठो मैं छोड़
देता हूं
न जाने क्यों
मैं
चल दी उसके
साथ
फिर वह हंसकर
बोला
नमस्ते दीदी!!
अहसास जगाते हैं शब्द
रिश्ते बनाते हैं शब्द
शब्दों से मत
खेलो
करो सम्मान इनका
यही तो है
हमारी संस्कृति!!
3. - चिट्ठियां
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती
थीं।।
होता था इंतजार
जब याद
अपनों की आती
थी,
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती
थीं।।
अब पूछते हैं लोग
क्या होती थीं
चिट्ठियां
क्या बताएं
खुशी और गम
की
ताबीज होती थीं
चिट्ठियां
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती
थीं।।
चिट्ठी पर होता
पता किसी घर
का
नहीं होता था
तो
उस पर नंबर
मकान का
फिर तो आई
बयार ऐसी
कि गुम गईं
चिट्ठियां
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती
थीं।।
वक्त ने करवट
खाई
पश्चिम से बयार
आई
हाथों में औजार
आए
उड़ा ले गईं
हमारी चिट्ठियां,
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती
थीं।।
चौबारों में फुरसत
के पल
याद दिलाते थे
चिट्ठियां
बातें होती थीं
पिछली चिट्ठी की,
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती
थीं।।
4. मेरा घर
लगता है कि
यह मेरा ही
घर है
वही जो काफी
पहले कही गुम
गया था
अब आकर
मिला दुबारा
मेरे अपनों के साथ
मेरा अपना घर।
5.चिट्टी लिख दो इक हाकिम को.....
चिट्टी लिख दो
इक हाकिम को
गुंडे बहुत सताते
हैं
राह रोक लेते
बेटी की खींच
दुपट्टा लेते हैं
हर दिन बाइक
यूँ दौड़ाते टक्कर
मारे फिरते हैं।
चिट्ठी लिख दो
इक हाकिम को.....।
हॉट-बाजार में जब
मिल जाते गाली
देकर जाते हैं
पुलिस दरोगा करूं शिकायत
धमकी हमें सुनाते
हैं
भद्दी भद्दी गाली देते
बेकाबू शोर मचाते
हैं,
चिट्ठी लिख दो
इक हाकिम को.....।
एक दरोगा गांव में
आया पूछताछ के
चला गया
होशियार रहने का
सबको पाठ पढ़ा
के चला गया
मन डरता है
आते जाते अनहोनी
से डरता हूँ
चिट्ठी लिख दो
इक हाकिम को....।
खेत हमारा जोत लिया
है लेखपाल सुनता
उनकी है
घर में रहना
मुश्किल बाबू सांसत
में अब जान
पड़ी है
कुछ भी आस
मिली न हमको
अब आयी ये
कठिन घड़ी है
चिट्ठी इक लिख दो
हाकिम को......।
6. कोरोना तुझे जाना होगा।
कोरोना, तुझे जाना
होगा।।
हम हैं आर्यावर्त
के वासी
जहां बिराजे मथुरा-काशी।
जिसके पैर पखारे
सागर
ऊपर जिसके हिम की
चादर।।
तुझे जाना होगा
कोरोना, तुझे जाना
होगा।।
राम बसें जिसके
कण कण में
कृष्णा की रज
है माथे में।
आर्यावर्त की शान
निराली
वन-उपवन देते
हरियाली।।
तुझे जाना होगा।
कोरोना तुझे जाना
होगा।।
हम भारत के
अतुल वीर हैं
दांत शेर के
भी गिनते हैं।
टिकना तेरा नामुमकिन
है
झुकना तेरा ही
मुमकिन है।।
तुझे जाना होगा
कोरोना, तुझे जाना
होगा।।
धोकर हाथ हम
करें धुनाई
बात समझ
न तुझको आई।
दुनिया को तू
भले सता ले
हमसे मिलेंगे कंकर ढेले।।
तुझको जाना होगा
कोरोना, तुझको जाना होगा।।
हर मौसम की
कृपा है हम
पर
छह ऋतुओं की सौगात
मिली
हम पर नही
चली अति कोई
संकट आकर खुद
ही रोईं।।
तुझे जाना होगा।
कोरोना, तुझे जाना
होगा।।
विश्व गुरु है
जग में भारत
सारी दुनिया जानती है।
जिसका भेजा मिला
संक्रमण
उससे भी कोई
भय नहीं।।
तुझे जाना होगा।
कोरोना, तुझे जाना
होगा।।
शनिवार, 18, जुलाई 2020
7. कोरोना को गोली मारो।।
हाथ धोकर पड़
जाओ पीछे
कोरोना को गोली
मारो।
मुंह पे मास्क
जंचे खूब यारो
हो जाओ बेफिकर
हे प्यारो।
कोरोना को गोली
मारो।।
घर से निकलो
बिन मतलब ना
बाइक पर भी
चलो अकेले।
सेनिटाइजर जेब में
रखो
करते रहो सफाई
यारो।
कोरोना को गोली
मारो।।
भीड़भाड़ हो, जाओ
ना
दूर से कन्नी
काटो
गले मिलो, ना हाथ
मिलाओ
करो नमस्ते दूर-दूर
से।
कोरोना को गोली
मारो।।
सफर दूर का
टालो भी
घर में रहो,
न भटके जी
छींको मत औ
खांसो ना
हो जब ऐसा
भटको ना।
कोरोना को गोली
मारो।।
बच्चों को दो
रोज नसीहत
भटकोगे तो बड़ी
फजीहत
लॉक डाउन का
समझो तत्व
पाओगे जी भर
अमरत्व।
कोरोना को गोली
मारो।।
मजबूरी में काम
पर जाना
औरों से फासला
बनाना
नाक ढको हो
चाहे गमछा
रहना है जो
चंगा-अच्छा।
कोरोना को गोली
मारो।।
08.07.2020
8. जीवन की ये कठिन घड़ी है,
आफत में अब
जान पड़ी है,
फिर भी
हमको जीना है।
दुष्कर नहीं, दुरूह बहुत
है,
कंटक पथ में
रुधिर पग में
है
फिर भी हमको
जीना है।।
आसमान से आग
भी बरसे
प्रलय जल से
भी घिर जाएं
फिर भी हमको
जीना है।।
रिश्ते बिगड़ें या फिर
उजड़ें
दूरी योजन भर
बढ़ जाये
फिर भी हमको
जीना है।।
निशा घोर हो,
पथ न सूझे
प्रस्तर की बरसात
भी आए
फिर भी हमको
जीना है।।
अरि घेरे हों
गोले बरसें
जीवन खतरे से
भर जाए
फिर भी हमको
जीना है।।
रोटी रोटी रोज
कठिन हो
जल की बूंद-बूंद दुष्कर
हो
फिर भी हमको
जीना है।।
धैर्य प्रबल, मनवेग प्रबल
हो
हिम्मत से तन
मन लवरेज हो
ऐसा जीवन जीना
है।।
जीवन है अनमोल
धरा पर
इसका कोई मोल
नहीं है
जीवन भर जीवन
जीना है।।
जीवन भर जीवन
जीना है।।
15 जून
2020
9. सुनो
आज एक बात
कहनी है
क्या जरूरत है
जिंदगी की
सोचा है कुछ!
नहीं न!
तो सुनो कुछ
अपने अंदर की
आवाज
वही बताएगी
जिंदगी की जरूरतें।।
सुनो
एक बात
जरूरी यह भी
है
जीवन यात्रा के लिए
खाद पानी
यानि कि भोजन
मिलता रहे पर
कैसे,
यह सोचा है
कभी!
नहीं न!
तो सोच कि
भोजन
मिलता रहे।।
सुनो
क्या दो रोटी
से ज्यादा
जरूरत है जिंदगी
को
नहीं न!
फिर संग्रह क्यों
वह भी दूसरे
का हिस्सा
हड़पकर बल-छल
से
तो
यह भी तो
नहीं है जिंदगी
सोचा है कभी!
10. बाकी तो सब ठीक है....
बाकी तो सब
ठीक है, बैल
मरे दस-बीस।
गेहूं को लकवा
लगा, मटर निपोरे
खीस।।
आलू भी बेदम
हुई धनिया को
दिया पीस।
बैगन में लुढ़कन
रहा, लौकी मारे
टीस।
बाकी तो सब
ठीक है......।।
छप्पर कद्दू चढ़ रहा,
फैल रहा दिन
रात।
भिंडी ऐसी हो
रही, हाथ न
आवे बात।
मिर्ची काली पड़
रही, चढ़ा करैला
तीस।
कटहल ऐसा हो
रहा जैसे आलू
का पीस।
बाकी तो सब
ठीक है.....।।
दादी ऐसी हो
रहीं जैसे पक्का
आम।
दादा लाठी लेकर
निकले,बाहर गिरे
धड़ाम।
छोटका उधम मचा
रहा, स्कूल से
लागे टीस।
चुटकी पढ़ती खूब है,
मास्टर मांगे फीस।
बाकी तो सब
ठीक है......।।
कोरोना तो बेदम
हुआ, पर खांसी
लेती जान।
अम्मा का सिर
दर्द बढ़ा, उतरा
नहीं जुकाम।
फीवर तो है
चल बसा, दर्द
दे रहा टीस।
आटा घर में
है नहीं, चावल
हुआ उन्नीस।।
बाकी तो सब
ठीक है.......।।
बाढ़ आई सब
बह गया, घर
भी हुआ बेजार।
घर पीछे का
गिर गया और
आगे पड़ी दरार।
गोरू-बछरू छोड़
दिए हैं, चारे
की है रार।
राम का ही
है भरोसा, अब
घर में हैं
हम चार।।
बाकी तो सब
ठीक है.......।।
25.08.2020
11. कोरोनवा उजारि दिहिस....
-संतराम पाण्डेय-
कोरोनवा उजारि दिहिस
हाय दइया दइया।
नौकरिया छुड़ाय दिहिस
हाय दइया दइया।।
थारी बजवाइस, ताली बजवाइस
मुंह पे लगवाय
दिहिस चोंगा,
हाय दइया दइया।।
कोरोनवा उजारि दिहिस हाय
दइया दइया।।
टरेनिया रुकवाइस, बस रुकवाइस
इस्कूलवा मा लगवाय
दिहिस ताला,
हाय दइया दइया।
कोरोनवा उजारि दिहिस हाय
दइया दइया।।
दफ्तर छुडाइस, बजरिया छुड़ाइस
लरिकन क कय
दिहिस बेजार,
हाय दइया दइया।
कोरोनवा उजारि दिहिस हाय
दइया दइया।।
कमवा छुड़वाइस, घर मा
बैठाइस
हथवा मा थमाय
दिहिस झाड़ू,
हाय दइया दइया।
कोरोनवा उजारि दिहिस हाय
दइया दइया।।
अम्मा भी डांटे
बापू फटकारै
बीबी थमाइस रसोई औ
माला,
हाय दइया दइया।।
कोरोनवा उजारि दिहिस हाय
दइया दइया।।
गज भर के
दूरी, कोरोन्टाइन के
भुतवा
पड़ोसी के घर
मा लगवाय दिहिस
ताला,
हाय दइया दइया
कोरोनवा उजारि दिहिस हाय
दइया दइया।।
न बैंड बाजा
न घराती बराती
शदियौ मा कय
दिहिस सब गड़बड़झाला,
हाय दइया दइया।।
कोरोनवा उजारि दिहिस हाय
दइया दइया।।
फैक्ट्री छोड़ाइस कारखनवा छोड़ाइस
बजार औ दुकनिया
मा लगवाय दिहिस
ताला
हाय दइया दइया।।
कोरोनवा उजारि दिहिस हाय
दइया दइया।।
......२९.०८.२०२०
12. यही दे मेरे मौला
आकाश की ऊंचाई
मन की गहराई
दिल का विस्तार
यही दे मेरे
मौला।।
जीवन का यथार्थ
रिश्तों का अर्थ
दोस्तों का प्रेम
यही दे मेरे
मौला।।
राह का संकेत
घरों में मेल
सभी का प्रेम
यही दे मेरे
मौला।।
जीवन की समझ
उलझनों की सुलझ
दर्द की दवा
यही दे मेरे
मौला।।
सबसे जुड़ाव
दुनिया का फ़ैलाव
दुख में धैर्य
यही दे मेरे
मौला।।
सब में खुशी
का वास
अभावों का नाश
प्रभु का साथ
यही दे मेरे
मौला।।
सब में हो
संवाद
न हो कभी
विवाद
चरित्र में गहराई
यही दे मेरे
मौला।।
बडों को सम्मान
छोटों को प्यार
समाज की सीख
यही दे मेरे
मौला।
यही दे मेरे
मौला।।
13. पुरुष
-संतराम पाण्डेय-
सुनो
ईश्वर ने तुम्हें
पुरुष क्यों बनाया
सोचा है कभी
नहीं न!
तो सुन।
हर परिस्थिति से लडऩे
में
सक्षम है वो
अपार कष्ट में
भी
न वह रोता
है
न घबराता है
वह घबराए नहीं,
इसीलिए तो
अनगिनत रिश्तों में बांधा
उसे।
बहन, मां, बेटी,
पत्नी
भाभी जैसे
रिश्ते मिले तुझे
उपहार में
ये
रोने न पाएं
कभी
इसलिए तुझे भेजा
अपने जैसा
मजबूत बनाकर
ताकि
तू कर सके
सुरक्षा उनकी
अपनी मजबूत बाजुओं से
सुनो
इस पर भी
यदि
वह रोती है
डरती है
तो मिथ्या है तेरा
जगत में आना।
पहचान अपने वजूद
को
कर ले दृढ़
संकल्प
कि तेरे
रहते
इन रिश्तों को नहीं
लगेगा कलंक
न ही लांघ
सकेगा कोई
मर्यादा की लक्ष्मण
रेखा।।
नारी तो थी
ही
सृष्टि की रचना
में सक्षम
तुझे भेजा ईश्वर
ने
ताकि तू बन
सके
कवच नारी का
और
कर सके किसी
भी
आतताई का संहार।
सिद्ध कर
अपनी उपस्थिति
और बन जा
मजबूत सुरक्षा कवच
नारी का
ताकि कोई न
रुला सके
जगत जननी नारी
को।।
14 राम कसम......
आसपास देखा न
तुमको, नींद उड़
गई राम कसम।
आना जाना भूल
गया मैं खुद
को भूला राम
कसम।।
ऐसा मौसम धुंध
छा रही दिखना
तो तुम बंद
हुए।
तेज चमक सब
धुंध खा गई
धूप दिखी न
राम कसम।।
सब कहते हैं
सूरज तुमको तेज
तुम्हारा राम कसम।
धूप निकलनी बंद हो
गई कहाँ खो
गए राम कसम।।
कपडे पड़े अलगनी
देखो गीले पड़े
मायूस बड़े।
ऐसे कैसे काम
चलेगा तुम्हीं बताओ
राम कसम।।
बच्चे बोलें ठंड लग
रही खेल हुआ
काफूर सुनो।
धुंध काटकर निकलो जल्दी
मौसम सुधरे राम
कसम।।
एक नहीं सौ-सौ गड़बड़
है, तुम बिन
सब हैरान हुए।
स्कूलों में छुट्टी
हो गई, घर
में बच्चे राम
कसम।।
ऊधम मचाएं घर में
बच्चे, पढऩा लिखना भूल
गए।
जल्दी बाहर निकलो
चमको, मौसम सुधरे
राम कसम।।
नाक चल रही,
सांस फंस रही,
बच्चे बूढ़े हैरान
हुए।
चारों तरफ है
धुंध छा रही,
इन्हें सुधारो राम कसम।।
15 .हास्य व्यंग्य: चुनाव चालीसा
दोहा........
अब चुनाव है शीश
पर, कर दो
बेड़ा पार।
वर दो वीणा
वादिनी, जीत जाऊं
संसार।।
हे हनुमान करहुं भव
पारा।
करो पार चुनाव
की धारा।। १
कहौ तो लंदन
में गुण गाऊं।
कहौ विदेश में धूनी
रमाऊँ।। २
कहौ तो मानसरोवर
जाऊं।
कहौ तो कीर्तन
रोज कराऊँ।। ३
अब चुनाव है सिर
पर भारी।
करहुं कृपा अब
हे त्रिपुरारी।। ४
अरि हैं एक
एक से भारी।
उनमें बहु हैं
इच्छाधारी।। ५
अस्त्र शस्त्र से सजे
हैं दुरजन।
इनमें कुछ हैं
खाटी भंजन।। ६
यह चुनाव की बेला
आई।
वादों की बरात
है लाई।। ७
शूट बूट वाले
भी नेता।
कहते सब कुछ
पर न देता।
८
गाड़ी घोड़ा धूल उड़इहै।
नेता को चमचा
चमकइहै।। ९
ईवीएम हो या
बैलेट माना।
बुद्धि फेरि दो
हे हनुमाना।। १०
करतब प्रभु अब यही
लगाओ।
जमानत उनकी जब्त
कराओ।। ११
वोटर बस हमरैे
गुन गावहिं।
है प्रभु कृपा करहुं
यही ठावहिं।। १२
जै जै जै
हनुमान गुसाईं।
करहुं कृपा ईवीएम
की नाईं।। १३
एक छत्र हो
राज हमारा।
गूंजै बस मेरा
ही नारा।। १४
चमचै जम कै
मौज उड़ावैं,
निशिदिन बस हमरै
गुण गावैं।। १५
वर दो प्रभु
पूजहुं दिन राती।
विपक्ष बैठ के
पीटै छाती।। १६
हे प्रभु मंदिर-मंदिर
जाऊं।
लडुवन के परसाद
चढ़ाऊं।। १७
रखूं व्रत मंगल-शनिवारा।
दूरि नशावहुं कंटक सारा।।
१८
करौ कृपा अतुलित
बलधामा।
हमरे काज तजौ
विश्रामा।। १९
चौदह के चुनाव
को छोडा़े।
अब उन्नीस से नाता
जोड़ो।। २०
दोहा
चौबीस है शीश
पर, कृपा करो
हे ईश।
हाथ जोरि वर
मांगहुं, देहु वानराधीश।।
इकसठ बार पढै़
जो, मिटै कष्ट
सब रार।
चालीसा में गुण
बहुत, महिमा अपरम्पार।।
16 एक छोटी सी रचना
किसी को मिलती
खीर मलाई
किसी को सूखा
भात नहीं,
किसी को मिलती
लाख कमाई
किसी को रोटी-दाल नहीं।
कैसे हटे गरीबी
भाई
ये मामूली बात नहीं,
नारे भी आते
चुनाव में
ये कोई सौगात
नहीं।
देते हैं बातों
में पैसा
करते हैं ये
रोज ढिठाई
हाथ धो रहे
जो मिनरल में
ये उनके वश
की बात नहीं।।
बड़ा देश है
शक न कोई
देश भी चले
बड़ाई से
खानदान अब नहीं
चलेगा
देश है ये
खैरात नहीं।।
टुकड़े करने वाले
सोचें
अपनी और पिट्ठुओं
की
आंख उठाकर कोई देखे
है ऐसी औकात
नहीं।।
आज पुराने कागजों की
तलाश में तकरीबन
1984 के आसपास लिखी गई
मेरी कुछ पंक्तियां
मिलीं। तब मैं
सवेरा फैजाबादी के
नाम से लिखता
था और नोएडा
में दैनिक युगांचल
में सिटी रिपोर्टर
रहा।
१७ .
....सत्ता की है डोर कहां पर...
संतराम पाण्डेय सवेरा फैजाबादी
सत्ता की गलियों
में देखों, अब
कैसा अंधेर मचा
है,
निर्धन नित धनहीन
बन रहा, धनवाला
धनवान बना है।
सत्ता भी संरक्षण
देती, नित-नित
नए विधान बनाकर,
जनता का ही
रक्त चूसते, खुद
को जनसेवक कहलाकर।
हथियारों का सौदा
हो या, हो
कोई जनहित प्लानिंग,
रोजगार हित कर्ज
योजना, या हो
कोई धन की
लोनिंग।
सत्ता की है
डोर कहां पर,
जनता को इससे
क्या लेना,
जनहित प्लानिंग हमें चाहिए,
नहीं बनेंगे काल
चबेना।
वोटों की ही
नीति चल रही,
पक्ष-विपक्ष के
डेरे में,
वीपी हों या
देवी हों, या
राजीव के खेमे
हों।
एमए करके उदर
तृप्ति हित,रिक्शा
भी तो ढोते
हैं,
या जीवन नरकीय
बने ना,फंदों
से लटके होते
हैं।
कृषकों का घर
आज भरा जब,
खेती के धन-धान्यों से,
उसका लागत मूल्य
देख लो,मंडी
और बाजारों से।
सरकारी घाटा तो
दिखता है, हर
साल सरकारी आंकडों
में,
कृषकों का घाटा
केवल दिखता, फूटे
बर्तन भाड़ो में।
छात्रों को दिग्भ्रमित
कर रहे,नेता
आज कुचालों से,
शिक्षा-दीक्षा दूर हो
गई, फंसा दिया
जंजालों से।
जनता की सामान्य
वेदना से सत्ता
अनजान नहीं,
एक सवेरा होगा ऐसा,
तब होगा कल्यान
नहीं।।
18. रचना: उसकी उम्र हो गई।
उसकी उम्र हो
गई
बाल पक गए
झुर्रियां दिखने लगीं हैं
अपने थोड़ा
फासला रखने लगे
कहते हैं
उसकी उम्र हो
गई।।
घुटने अब
चर्र-मर्र करने
लगे
दांतों में
कंपकंपाहट
पानी से सिहरन
दिल में घबराहट
बिछुडऩे की बेचैनी
बढऩे लगी
लोग कहते हैं
उसकी उम्र हो
गई।।
अपनों की गुर्राहट
वह समझने लगी
कुछ न मानने
को
अब उपेक्षा
समझने लगी
कहने लगे लोग
उसकी उम्र हो
गई।।
बेटों की आह
पर
सरपट दौडऩे वाली
उनकी आह से
अपना दर्द
समझने वाली
अपनी तड़प
दबाने लगी
कहते हैं सब
उसकी उम्र हो
गई।।
भूख अब सताती
है
प्यास बेचैन करती है
इंतज़ार जब नहीं
होता
बोलना उसका
अखरने लगा
उसकी उम्र हो
गई।।
रात- रात भर
जागना
उसकी आह
नहीं करती बेचैन
उसकी तड़पन से
नहीं कोई बेचैन
ख़लल डालने की मशीन
वह होने लगी
उसकी उम्र हो
गई।।
बालों की सफेदी
जारी करती है
एक गाइडलाइन
जिसमें शामिल है
उसकी वरासत
पाने की ललक
तभी तो
उसकी उम्र हो
गई।।
थकी रक्त वाहिकाएं
शरीर को नहीं
दे पा रहीं
खाद- पानी
जरा सी दौड़
में ही
बोल जाती हैं
आदत पड़ गई
अटकते भटकते
प्रवाह की गति
थमते हुए
उसकी उम्र हो
गई।।
19. समाज में फैली घोर हैवानियत पर लिखी गई एक बत्तीस पंक्तियों की- बत्तीसी
- अंकल की टॉफी-
अंकल की टॉफी
रुला गई
मां की
याद
दिला गई।।
बहाने में धोखे
बता गई
दुनिया की हकीकत
जता गई।।
मासूम का भोलापन
उजाड़ गई
औरों को नसीहत
समझा गई।।
इंसान के चेहरे
पड़ा शैतान
का नकाब
उतार गई।।
भरोसे पर
भरोसे
की कीमत
की हकीकत
समझा गई।।
मां की डांट-डपट
का मतलब
दुनिया को
समझा गई।।
अंकल की टॉफी
इस जहां में
शैतान की
शक्ल दिखा गई।।
बच्चों को
बुरी नजर से
बचाने की जिद
सिखा गई।।
-12 फरवरी
2018
20. हमने भुगता है बहुतों को.....
हमने भुगता है बहुतों
को, तुझे भी
भुगतेंगे-कोरोना
यह धरती है
निडर जवानों की
तुझसे क्या घबराना-कोरोना।
हैजा आया, प्लेग
भी आई चिकनगुनिया की चिक
चिक आई,
चेचक, सूखा पोलियो
की भी इस
देश में आँधी
आई,
टिक न सकी
इस धरती पर
तू क्या ठहरेगा-
कोरोना।।
भूकम्पों ने धरा
हिलाई तूफानों की
आँधी आई
दुश्मन देशों ने नज़र
उठाई आतंकवाद
की हवा चलाई
हम न डिगे,
जमे हैं अब
तक तू क्या
टिकेगा- कोरोना।।
उत्तर में है
खड़ा हिमालय दक्षिण
पांव पखारे सागर
हरियाली नदियों की कल-कल
महाकाल कैलाश बसें जब
तब कहाँ टिकेगा-कोरोना।।
हमने भुगता
है बहुतों को
तुझे भी भुगतेंगे-कोरोना।।
21. सुनो, विपदा आई है!
सुनो,
उसके आने-जाने
का कोई वक़्त
नहीं होता
वह आती है
अपनी मर्जी से
बड़े शान से
वह आती है
तो हलचल मचा
जाती है
प्लेटफॉर्म पर रेलगाड़ी
सी।।
सुनो,
यह विपदा आई है
असमाप्तप्राय सी
भीमकाय सा वदन
लिए
कुरूप सी कुल्टा
जैसी
नजर उठती है
उसकी तरफ हिकारत
सी।।
सुनो,
उसकी पहचान बे-राग,
बे-लय सी
चाल उसकी
शूर्पणखा सी माहिर
है हर पेचोखम
में
रूप अधुनातन प्रेयसी सी
फंसाती हनीट्रैप सी।।
सुनो,
चाल उसकी लहर
सी क्रम में,
यथा- एक, दो,
तीन, और भी
प्यासी नदी सी
बलखाती बढ़ती है
आती है मुसाफ़िर
बन निचोड़ती है
पिपासु सी।।
सुनो,
आता है एक
बवंडर सा
पसारती है खौफ़
और कर जाती
है ख़ौफ़ज़दा
हकीकतन है वह
एक उल्कापात सी
बंजर बना देती
बरसात सी।।
सुनो,
बस, डरना मना
है रु-ब-रु होने
पर भी
स्वभाव है उसका
डराना
पर हम निडर
जो हैं साहसी
भी
फौलादी हैं सीने
प्रताप से कि
हम बेबस नहीं
हैं बंजर ज़मीन
सी।। ..
................ 08.05.2021
22. उड़ी उड़ी रे पतंग, उड़ी उड़ी रे...
कभी ये पहुँची
पुस्तक मेला
कभी हाथ में
पकड़े ढेला,
कभी है दिखती
जंतर मंतर,
कभी है जाती
संसद अंदर।
उड़ी उड़ी रे
पतंग, उड़ी उड़ी
रे...
आसमान को छूती
दौड़ी
चाहे पास न
फूटी कौड़ी।
ट्रंप बन कभी
है इठलाती
कभी जाय ईरान
पे छाती।
उड़ी उड़ी रे
पतंग उड़ी उड़ी
रे.....
जा पहुंची खेतो के
अंदर
मिला वहां न
कोई बंदर।
पशुओं के बहु
झुंड दिखाए
कृषक हाथ डंडा
ले धाए।।
उड़ी उड़ी रे
पतंग, उड़ी उड़ी
रे.....।।
इस पर राजनीति
भी आयी
दूजे हाथ में
डोर थमाई।
इठलाती दिल्ली हो आयी
सबके मन की
थाह ले आयी।।
उड़ी उड़ी रे
पतंग, उड़ी उड़ी
रे.....।।।
भटकी दूर दूर
तक जाकर
खुशी मिली किरणों
में आकर।
सूरज बाबा उत्तर
आये
सबको ये संदेश
सुनाये।।
उड़ी उड़ी रे
पतंग उड़ी उड़ी
रे.....।।
.
23. एक समंदर.....
एक समंदर मेरे अंदर,
आ बैठा है
तनकर,
उठे ज्वार-भाटा जैसा
वह दिखता जैसे
बन्दर।
तन कर रहता
खूब ऐंठता करता
खूब खिलंदर,
बन जाये फूफा
पल भर में
उठता एक बवंडर।
जलधी की हस्ती
भी जाने मस्ती
करता जमकर।।
एक समंदर मेरे अंदर
आ बैठा है
तनकर।।
लिखना पढ़ना खूब
जानता, हलचल करता
अंदर
कितने जीव पाल
रखे हैं अपने
घर के अंदर।
राह दिखाता बिन अंखियन
के कैसा बना
सिकंदर
एक समंदर मेरे अंदर,
आ बैठा है
तनकर।।
कलम उठाये खुब लिख
डाले अपने मन
के अंदर
एक एक भावों
की बूँदें पथ
पर गिरती छनकर,
नए नए करतब
दिखलाती करती अजब
खिलंदर
एक समंदर मेरे अंदर
आ बैठा है
तनकर।।
कभी व्यंग्य करता है
तो कविता टपके
छनकर,
राह दिखाये कभी पथिक
को निशि में
दीपक बनकर,
भटकों की लाठी
बन जाता दिखता
जैसे दिनकर
एक समंदर मेरे अंदर
आ बैठा है
तनकर।।
---संतराम पाण्डेय
23.09. 2021
24. तूणीर हमारे रिक्त नहीं
-संतराम पाण्डेय-
अरि प्रचंड कितना भी
हो
तूणीर हमारे रिक्त
नहीं
आर्यावर्त है, दग्ध
धरा है
अव्यक्त यहाँ पर कुछ
भी नहीं।।
दृश्य-अदृश्य है खाक
यहां
करतल में भीषण शक्ति
यहीं
अभिलाषा है नभ उड़ने
की
परवाज़ यहाँ कमजोर नहीं।।
जीवन की इच्छाएं हैं
भोली
मृदुहासी सरस बयार
यहीं
आह्लादित हैं शिव भोले
सम
छल, द्वेष, कपट की
भीति नहीं।।
गर्जन-तर्जन नख-शिख
पर है
अरि के समक्ष दुंदुभी
यहीं
फ़ितरत है यहाँ सरेखों
सी
रिश्तों की जंजीर यहीं।।
बीते लमहों की पोटली
है
रिक्तता यहाँ पर कुछ
भी नहीं
मज़हब है प्रेम दुलार
यहाँ
शिकवों की है जगह नहीं।।
सुख की अनुभूति कष्ट
में भी
तम में है सुखद बयार
यहाँ
जड़ है संस्कृति की
गहरी सी
नदियां हैं सलिला,
व्यर्थ नहीं।।
हुंकार भरे जब जोश
यहाँ
फट जाये कलेजा दुश्मन
का
गति-वेग पवन जैसा ही
है
है प्रेम यहाँ, रिक्तता
नहीं।।
प्रेरक हैं ऋषियों
की वाणी
कर्मठ है हर क़िरदार
यहाँ
कतरा-कतरा गंभीर जहाँ
चिंतन है, केवल दंभ
नहीं।।
सत्यम, शिवम् सुंदरम
है
जल, थल, नभ का प्रवाह
है
उत्तुंग शिखर का हिम्
भी है
है न शेष कुछ रिक्त
यहाँ।।
............16.05.2021
मेरठ, उत्तर प्रदेश।
25. पिता
पिता साधारण इंसान
नहीं,
वह सूत्रधार है सृष्टि
का,
पिता इक नश्वर काय
नहीं,
वह अजर-अमर इक साया
है।।
पिता है तो सिर ऊँचा
है,
जग छोटा एक खिलौना
सा,
हर मुश्किल है आसान
वहां
जब हाथ पिता का पाया
है।।
दुनिया तो खेल तमाशा
है
यह मेला वही दिखाता
है
मेला-ठेला जब आता है
इक कन्धा हमें उठाता
है।।
पिता है उम्मीद बड़ी
पिता ही जग में लाता
है
पिता ही सर्वस्व यहाँ
उससे ही जग का नाता
है।।
पिता ही पेड़ नीम का
है
पीपल की छाया भी है
सूरज सा तपता लावा
है
शीतल हिम की चादर भी
है।।
वह कुम्हार अद्भुत
सा है
अम्बर जैसी शोहरत देता
हर गम अपने सीने में
रख
खुशियों की सौगात है
वह।।
पिता है तो जग न्यारा
है
वरना जीवन है सपना
सा
कंचन सी कामना पिता
रहमत की शीतल हवा वही।।
वह है अभिमान संतानों की
हर गम की चादर ओढ़े
जो
वह पिता हमेशा हँसता
है
है हर सवाल का उत्तर
वह।।
पिता है तो जग सुन्दर
है
हर सपने की तस्वीर
वही
वह कर्म योग का ध्याता
है
है स्नेह, प्यार की
गागर सी।।
....संतराम पाण्डेय
20.06.2021
26. कुछ मत बोलो
...................
बारिश भी है, ओले भी हैं
सूरज बाबा राम भरोसे
आग जलाना मना है भइया
ओढ़ रजाई घर में दुबको
ठंड बड़ी है, कुछ मत बोलो।।
सब्जी मंहगी बेच रहा है
घर में कड़की पसर रही है
बाहर हवा भी तेज बह रही
ठिठुरन बढ़ती रोज जा रही
नरमी रखो, कुछ मत बोलो।।
बच्चों का स्कूल बंद है
फीस जमा भी जल्दी कर दो
नोटिस मैडम का है आया
बच्चे हैं कमजोर बहुत भी
रोज़ पढ़ाओ, कुछ मत बोलो।।
गुड़िया को ठंड है लगती
छुटके को स्वेटर लेना है
अम्मा की भी आंख है दुखती
डॉक्टर बाबू को चलो दिखाओ
पैसा कम है, कुछ मत बोलो।।
चोर बगल में रात को आये
रघुबर का ताला टूटा है
जिम्मी की स्कूटी ले गए
रजुआ को डंडा मारे हैं
पुलिस गश्त है, कुछ मत बोलो।।
चौराहे पर भीड़ बहुत है
लौंडे करते उधम रोज हैं
बिटिया को बाजार न भेजो
समय का कुछ पता नहीं है
चौकस हो पर, कुछ मत बोलो।।
मंत्री जी हैं शहर में आये
सड़क बन रही, पोल गड़ रहे
मोटर कारें खूब दौड़ेंगी
टक्कर होती रोज बहुत है
हेलमेट पहनो, कुछ मत बोलो।।
27.
बहुत दिनों बाद 2018 में घर में tv पर फ़िल्म अमृत (राजेश खन्ना- स्मिता पाटिल) देखने
को मिली। सुनने को गीत मिला-
जीवन
एक लतीफा है,
बस
यही जीने का सलीका है।
इससे
प्रेरित ये कुछ पंक्तियां निकलीं। आप भी देखिए और इस लतीफ़े का आनंद लीजिये......
आज
गए बाजार में
मिल
गए कुछ बकलोल,
एक
दूजे की मिल कर सारे
खोल
रहे थे पोल।
खोल
रहे थे पोल,
हासिल
ना कुछ पल्ले
पोल
खोल कर मानो
उड़ा
रहे रसगुल्ले।
उड़ा
रहे रसगुल्ले,
जुड़
गया ढेर तमाशा
कुछ
को मिला लतीफा
कुछ
को मिली हताशा।।
नोट:- इस बकलोली का tv की बहस से कोई ताल्लुक नहीं है।
धन्यवाद।।
28.
सबक
मिलेगा--------
सबक मिलेगा--------
चलते चलते लड़ भिड़ जाओ
छोटों को भी खूब गरियाओ
अपने मन की रोज ही गाओ
बड़े जो डांटे चुप सुन जाओ।।
सबक मिलेगा।।
विद्यालय से छुट्टी मारो
नम्बर में पिछलग्गी धारो
एग्जाम में नकल हो पक्की
गुरु जी डांटें सुन लो चुप्पी।
सबक मिलेगा।।
घर में टीवी खोल के बैठो
मनमर्जी के चैनल देखो
सबकी बातें उड़े हवा सी
पिता जी डांटें लगे छुरी सी।
सबक मिलेगा।।
बाइक दौड़े रोज हवा सी
हेलमेट सिर में चुभे सुई सी
रोज फंसे आफत में जान
पुलिस थमा देती चालान।।
सबक मिलेगा।।
चौराहे पर उधम मचाओ
निर्दोषों पर तुम चिल्लाओ
देख सभी तुमसे घबराएं
हरकत देख बड़े दौड़ाएं।
सबक मिलेगा।।
पढ़ना लिखना मन न भाए
गलती कर फिर भी इतराये
सभी कहें ये है नालायक
मां भी डांटे सुधर जा बालक
सबक मिलेगा।।
…10.01.2020
.....संतराम पाण्डेय, मेरठ।।
29. कुछ पंक्तियां बजट पर.......
प्रियजन धागा बजट का
मत तोड़ो चटकाय।
एक बार टूटा बजट
फिर कैसे जुड़ पाय।।
एक बजट बहु साल में
कइसे हो तैयार।
यह भी देखो प्यार से
नज़र नरम होइ जाय।।
बिना बजट घर घर नहीं
बजट से ही बेड़ा पार।
बजट बिना न करि सको
यह भव सागर पार।।
बजट एक बहु रूप है
बजट से खुशी अपार।
बिना बजट कुछ ना मिलै
महिमा अपरम्पार।।
-01
फरवरी 2019
30. कुत्ता घर के अंदर पालें
कुत्ता घर के अंदर पालें
गाय छोड़ दिया जंगल में,
घर में पत्नी बाट जोहती
मन लगा बाहर वाली में
करम प्रधान है युग में भाई
कष्ट मिले जवानी में।।
राम राज चाहे सब कोई
राम बने न कोई भी
सीता कैसे बने नार
जब मन भटका
भरी जवानी में।।
भटके हैं नौजवान
कहते हैं सा बड़े-बड़े
भटक गए हैं बूढ़े भी अब
चुकें न कारस्तानी में।।
नक़ल स्वभाव मिला है हमको
बड़ों से विरासत में
नौजवान भी नकल कर रहे
वो भी पूरी मनमानी में।।
रोको टोको बच्चों को भी
जब भी चरित्र भटकता हो
कुछ तो फरक पड़ेगा मन में
चलेंगे न मनमानी में।।
हम सुधरेंगे, तुम सुधरोगे
भैंस न होगी पानी में
ऐसे ही हम सब सुधरेंगे
होंगे नहीं कहानी में।।
- संतराम पांडेय
मेरठ।
31. प्रयोगशालाएं
सुनो,
वह बडे बेबस होते हैं,
बुढ़ापे में भी रिक्शा चलाते हैं
कोई सवारी मिल जाए
इसे अपना सौभाग्य मानते हैं।।
झुकी कमर
झुर्रियों भरा चेहरा
यह किसी
सैलून में नहीं मिलता
यह वक्त के थपेड़ों की निशानियां हैं।।
दो जून की रोटी
हर पेट की जरूरत है
यह कैसे मिलेगी
कर्म से निर्धारित होता है
यही तो जिंदगी की सच्चाइयां हैं।।
सुनो
जब भी कोई बेबस-लाचार मिले
वह वक्त का मारा नहीं होता
यह जिंदगी की अग्नि परीक्षा है
जो परमात्मा के परीक्षण की
सुलभ कार्यशाला हैं।।
कार्यशालाएं भविष्य की
योजनाओं की धरोहर हैं
जिसमें अतीत की गहराइयां
अंत: तक समाहित हैं
बेबसियां भविष्य की बुनियाद हैं।।
-10.02.2024
32. राम का नया घर
सुनो,
राम
आए हैं
नए
घर में पधारे हैं
कुटिया
से महल में
आने
की रीत निभाए हैं।।
यह
मर्यादा भी है
उस
पुरुषोत्तम की
जिसने
पांव में
14
सालों तक अनगिन
जख्म
भ्री खाए हैं।।
सुनो,
कर्म
के कर्मयोगी की
धीर
के धैर्य की
परीक्षण
समय की कसौटी पर
परीक्षित
होने के परिणाम
का
एक नमूना भर है रामालय।।
सुनो
धैर्य
रखना विपरीत हवा में
सत्य
की डोर को
थामे
रखना अंत तक
यह
सीख भी देता है
राम
का भव्य रामालय।।
सुनो
राजतिलक
की रात
सत्ता
त्याग राम
निकले
वन
एक
राजकुमार की तरह
14
साल की घनी तपस्या में लौटे
मर्यादा
पुरुषोत्तम बनकर।।
-10.02.2024