Sep 20, 2018

मैं कविताएं कम ही लिखता हूं लेकिन आज न जाने क्यों, रच उठी एक छोटी सी यह कविता। आप भी पढ़ें मित्रों......नमस्ते दीदी!!
01. नमस्ते दीदी!!
-सन्तराम पाण्डेय-
स्कूल जाते हुए वह
रोज हमें कहता था
नमस्ते दीदी,
मैं चुप होकर

बस उसे देखती
रहती थी।।

पढऩे में होशियार था
हर बार अव्वल आता था
वह बड़ा था उम्र में
हमसे कई साल
फिर भी कहता था
नमस्ते दीदी!!
मैं बड़ी हो गई
स्कूल छूटा कालेज आ गई
सखी और दोस्त बने
पर कोई न मिला
जो कहे
नमस्ते दीदी!!
फिर एक दिन
खड़ी थी स्टापेज पर
ढलती शाम, लग रहा था डर
उसके दो शब्द अब भी
गूंज रहे थे मस्तिष्क में
नमस्ते दीदी!!
वहां कोई न था, बस
कुछ मनचले थे वहां
जो कर रहे थे छींटाकशी
तभी वह अचानक आया
और बोला
नमस्ते दीदी!!
वह था बाइक पर
लगाए था हेलमेट
मैं पहचान न सकी
लेकिन न जाने क्यों
अहसास जगा, कानों में गूंजा
नमस्ते दीदी!!
तभी उसने कहा साधिकार
बैठो मैं छोड़ देता हूं
न जाने क्यों मैं
चल दी उसके साथ
फिर वह हंसकर बोला
नमस्ते दीदी!!
अहसास जगाते हैं शब्द
रिश्ते बनाते हैं शब्द
शब्दों से मत खेलो
करो सम्मान इनका
यही तो है
हमारी संस्कृति!!



२०.०९.२०१८
आज फिर एक रचना।


पहले चिट्ठियां आती थीं।
अब नहीं आतीं। 
कितनी आत्मीयता होती थी 
चिट्ठियों में, आप भी देखिए मित्रों.... एक प्रयास।।
02. शीर्षक- चिट्ठियां
-सन्तराम पाण्डेय-


चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती थीं।।
होता था इंतजार
जब याद
अपनों की आती थी,
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती थीं।।

अब पूछते हैं लोग
क्या होती थीं चिट्ठियां
क्या बताएं
खुशी और गम की
ताबीज होती थीं चिट्ठियां
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती थीं।।

चिट्ठी पर होता पता किसी घर का
नहीं होता था तो
उस पर नंबर मकान का
फिर तो आई बयार ऐसी
कि गुम गईं चिट्ठियां
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती थीं।।

वक्त ने करवट खाई
पश्चिम से बयार आई
हाथों में औजार आए
उड़ा ले गईं
हमारी चिट्ठियां,
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती थीं।।

चौबारों में फुरसत के पल
याद दिलाते थे
चिट्ठियां
बातें होती थीं
पिछली चिट्ठी की,
चिट्ठियां आती थीं,
हंसती और रुलाती थीं।।